यह इतिहास के उन दस्तावेजों का कथन है, जब आर्यसमाज को मात्र धार्मिक संस्था मानकर भारत की राजनैतिक अवस्था को उन्नत करने वाली संस्था माना जा रहा था। "इण्डियन सोशियोलिजस्ट" नामक पत्रिका के मई सन् 1908 के अंक में श्याम जी कृष्ण वर्मा ने ने लिखा था कि "देश के राजनैतिक पुनर्जागरण के लिए जो आन्दोलन किये गए हैं, उनमें कोई भी आर्यसमाज जैसा शक्तिशाली आन्दोलन नहीं हैं।" एंग्लो इण्डियन पत्र "इंगलिशमैन" पर चलाये गये मानहानि के मुकदमे में 21 जुलाई सन् 1909 को लाला लाजपतराय ने यह स्वीकार किया था कि आर्यसमाज का राजनीति से सम्बन्ध है।
Ved Katha 1 part 1 (Greatness of India & Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में सी.आई.डब्ल्यु. सैण्डम् ने गुप्तचर विभाग की सूचनाओं के आधार पर एक पुस्तक "आर्यसमाज इन दि यूनाइटिड प्रोविन्सज" के नाम से लिखी। यह गोपनीय पुस्तक 1910 में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक में दी गई सूचनाओं के आधार पर आर्यसमाज पर प्रतिबन्ध लगाने के प्रस्ताव रखे जाने लगे। अपनी इस पुस्तक में सैण्डस् ने भारतीय सेना के सिपाहियों पर आर्यसमाज के बढते हुए प्रभाव पर बड़ी भारी चिन्ता प्रकट की है और यह लिखा है कि संयुक्त प्रान्त में सिपाहियों की राजभक्ति को प्रभावित करने के लिए 1895 ई. में "जाट समाचार" नामक पत्र का सम्पादक और एक आर्यसमाजी कन्हाईसिंह लखनऊ छावनी की सातवीं बंगाल कैवलरी में प्रचार करने के लिए गया था। यह कहा जाता है कि सन् 1907 ई. में झांसी की छठी जाट इन्फैण्ट्री के सिपाहियों में एक आर्यसमाज की स्थापना की गई थी और छावनी में आर्यसमाज के साप्ताहिक सत्संग के लिए एक भवन बनाने की योजना थी। किन्तु सैनिक अधिकारियों द्वारा इस आन्दोलन को दबा दिया गया। इसी प्रकार 1908 ई. में झांसी की छठी जाट सेना के सिपाहियों में आर्यसमाज के एक उपदेशक दौलतराम आये और वहॉं सत्यार्थप्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास की कथा करते रहे।
उन दिनों भारत सरकार के गुप्तचर विभाग निदेशक सी.आर.क्लीवलैण्ड थे। उन्होंने इस टिप्पणी को पाते ही 11-5-1910 ई. को एक लम्बी टिप्पणी लिखी, जिसमें लिखा गया था कि "आर्यसमाज भारत में सब से अधिक भयंकर ब्रिटिश सरकार विरोधी आन्दोलन है। यह सुनिश्चित रूप से सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक विश्वासों पर आक्षेप करता है, बैचेनी और असन्तोष को विद्रोह में परिवर्तित करता है और विभिन्न वर्गों को एक राष्ट्रीय तथा स्पष्ट रुप से ब्रिटिश विरोधी आधार पर एक सूत्र में बान्धता है।"
क्लीवलैण्ड की इस टिप्पणी का यह प्रभाव हुआ कि सेना विभाग ने पंजाब और संयुक्त प्रान्त की सरकारों से इस विषय में सलाह लेनी आरम्भ कर दी कि सेना में आर्यसमाजियों की भर्ती करने में क्या नीति अपनाई जाये। बहुत विचार के उपरान्त मार्च 1910 ई. में तत्कालीन सेनापति ओ.एम. क्रीघ इस बात का आदेश देने के लिए राजी हो गए कि आर्यसमाजियों की सेना में भर्ती न की जाए। किन्तु ऐसा आदेशा जारी करने से पहले गृहविभाग से राय लेना आवश्यक था। परन्तु तत्कालीन वायसराय लार्ड मिण्टो ने प्रधान सेनापति के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
अप्रैल 1908 से जाटों की दसवीं रेजीमेण्ट के सन्दर्भ में यह प्रश्न सेना में उठाया जाने लगा। क्योंकि दसवीं जाट रेजीमेण्ट के सिपाहियों में जो कि बहुसंख्य हरयाणा के थे, आर्यसमाज का प्रभाव सबसे अधिक था। 1898 ई. में यह रेजीमेण्ट बनारस में थी, तो यहॉं धार्मिक दृष्टिकोण से आर्यसमाज का संगठन बनाया गया। 1899 ई. में यह रेजीमेण्ट जब सिल्चर पहुंची तो वहॉं प्रधान सेनापति को गुमनाम ऐसे पत्र मिले जिन पर आरम्भ में आर्यसमाज में परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम "ओ3म" लिखित था। 1904 ई. में जब यह रेजीमेण्ट कानपुर पहुँची तो सिपाहियों ने अपने आर्यसमाजी स्वभाव के कारण, यहॉं भी आर्यसमाज के साप्ताहिक सत्संगों में जाना आरम्भ कर दिया। 1906 ई. में सेना अधिकारियों को यह सूचना मिली दसवीं जाट रेजीमेण्ट और दसवीं हडसन होर्स के सैनिक "जाट समाचार", "जाट हितकारी" और "केसरी" जैसे समाचारपत्रों को मॅंगवाते हैं। इस रेजीमेण्ट की सन्दिग्ध गतिविधियों को रोकने के लिए लेफ्टीनैण्ट कर्नल प्रेसी को चौथी राजपूत रेजीमेण्ट से दसवीं जाट रेजीमेण्ट में बदल दिया गया, जिससे वह सिपाहियों की स्वदेशी और आर्यसमाजी भावनाओं को दबा सके।
लेफ्टीनेण्ट कर्नल प्रेसी ने कार्यभार सम्भालते ही स्वदेशी तथा आर्यसमाज के बारे में इस रेजीमेण्ट के सम्बन्ध में लिखते हुए कहा कि सरकारी गुप्तचरों ने इस रेजीमेण्ट के स्वदेशी प्रचार के सम्बन्ध में अतिरंजित रिपोर्ट भेजी है। केवल एक ही घटना इस विषय में उल्लेखनीय थी कि दो साल पहले उनके पूर्वाधिकारी कर्नल हण्टर ने चार सिपाहियों को सत्यार्थप्रकाश रखने, मांस न खाने के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। कर्नल प्रेसी यह समझ गये थे कि सरकार आर्यसमाजी सिपाहियों के प्रति कठोर रुख अपनाना चाहती है। अत: उन्होंने सिपाहियों पर शहर में जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया, जिससे वे आर्यसमाजियों के सम्पर्क में न आ सकें। फिर भी धर्मभावना नहीं रुकी। जनवरी सन् 1908 की कानपुर में होने वाली लाला लाजपतराय की सभा में कर्नल प्रेसी यह देखने गये कि इसमें सेना के व्यक्ति तो उपस्थित नहीं हैं। परन्तु उन्होंने देखा कि कुछ सिपाही उपस्थित हैं। अत: उन्हें समुचित दण्ड दिया गया।
नवम्बर सन् 1908 में जाटों को सेना में भर्ती करने वाले एक अफसर मेजर जेमिसन ने उन जिलों में आर्यसमाज के आन्दोलन के प्रसार का विवरण तैयार किया, जिनसे जाटों को भर्ती किया जाता था। इस विवरण में कहा गया कि आर्यसमाज के सिद्धान्तों को पढाते समय राजद्रोह की शिक्षा दी जाती है।
1909 में कोहाट में 112वीं इन्फैण्ट्री के कुछ सिपाहियों ने आर्यसमाज की एक बैठक में सक्रिय भाग लिया था। इसी वर्ष बंगलौर में 12वीं रायफल के कुछ सिपाहियों एवं गैर कमिशन अधिकारियों ने आर्यसमाज की गतिविधियों में योगदान किया। इसका परिणाम यह हुआ कि एक आर्यसमाजी सूबेदार को कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही सेवानिवृत्त किया जा रहा था। सेवानिवृत्ति के विदाई समारोह में दो नागरिक आर्यसमाजी भी सम्मिलित हुए। इससे सेना के प्रमुख अधिकारी यह सोचने लगे कि नागरिकों को सिपाहियों के साथ सम्पर्क से रोका जाए। अगस्त 1909 में सेना के प्रधान कार्यालय को रिपोर्ट मिली कि बड़ौदा में 94 वीं इन्फैण्ट्री का एक जाट सिपाही दो वर्ष से आर्यसमाज का सदस्य था और वह छुट्टी के बाद आया तो उसने रेजीमेण्ट में आर्यसमाज के सिद्धान्तों के प्रचार में बड़ी लग्न दिखाई। इसका फल उसे भुगतना पड़ा और वह तुरन्त सेवामुक्त कर दिया गया।
जनवरी 1910 में जाटों को सेना में भर्ती करनेवाले अफसर मेजर बोर्ने ने सैनिक मुख्यालय से इस विषय में सलाह मांगी कि रंगरूटों को भर्ती करने से पहले उनसे जो प्रश्न पूछे जाते हैं, उनमें क्या यह भी पूछा जाये कि वे आर्य हैं या नहीं? यह प्रश्न इसलिए उठा कि दसवीं जाट रेजीमेण्ट के सेना कमाडिंग आफिसर ने सरकार को सूचित किया था कि उनकी रेजिमेण्ट में आर्य लोगों को भर्ती नहीं किया जाए। इस सुझाव पर मेजर जी.बेली ने सन् 1910 में सरकार के लिए एक विस्तृत टिप्पणी लिखी। इस टिप्पणी में कहा गया था कि भारतीय सैनिक चूंकि इस देश में विदेशी शासन को बनाये रखने में सहायता करते हैं, अत: आर्यसमाज ने सर्वप्रथम सेना में भर्ती होने के विरुद्ध प्रचार आरम्भ किया। परन्तु अब उन्होंने अपनी नीति बदली है और उनका लक्ष्य है कि सेना में भर्ती हुए व्यक्तियों को आर्यसमाजी बनायें और जो व्यक्ति आर्यसमाजी बन चुके हैं उन्हें अधिक से अधिक संख्या में सेना में भर्ती करायें। मेजर बेली की टिप्पणी को एडजुडेण्ट जनरल के पास भेजते हुए मार्च 1919 को कर्नल सी.बी.डब्ल्यू. पिरले ने नोट लिखा "यदि आर्यसमाजियों को सेना में भर्ती होने से रोक दिया जाये, तो यह कोई कठोर कार्यवाही नहीं होगी।" 23 मार्च 1910 मो प्रधान सेनापति ने आर्यसमाज सम्बन्धी उपर्युक्त टिप्पणी पर अपनी सम्मति प्रकट करते हुए इस बात पर बल दिया कि सेना में आर्यसमाज से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों को भर्ती पर प्रतिबन्ध लगानेवाला एक आदेश तुरन्त जारी कर दिया जाना चाहिए। परन्तु इस प्रस्ताव से गृह मन्त्रालय ने असहमति प्रकट की।
इस प्रकार जब सेना-विभाग और गृह-विभाग एक दूसरे से सहमत नहीं हुए तो यह विषय अन्तिम निर्णय के लिए तत्कालीन वायसराय लार्ड मिण्टो के पास भेजा गया।
17 अक्तूबर 1910 को लार्ड मिन्टों ने अपने आदेश में लिखा कि मेरी सम्मति में समूचे आर्यसमाज को राजद्रोही होने के कारण अवैध घोषित करना एक गम्भीर राजनैतिक गलती होगी। सेना के लिए आर्यसमाजियों की भर्ती पर लगाये जानेवाले निर्णय को इसी रूप में देखा जाएगा। मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि ऐसा निर्णय भारत और इंग्लैण्ड में भयंकर विरोध उत्पन्न करेगा। इस प्रकार इस विवाद का पटाक्षेप हो गया। - आदित्य लौहान (आर्यप्रतिनिधि सभा हरियाणा शतावरी स्मारिका, मई 1987)
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This comment of Cleveland had the effect that the Army Department started taking advice from the governments of Punjab and United Provinces about what policy should be adopted in recruiting Aryasamajis in the army. After much consideration, in March 1910 AD, the then commander O.M. Kreegh agreed to order that the Aryasamajis should not be admitted to the army.
When questioned for military recruiting on Aryasamajists | Arya Samaj Madhya Pradesh – Chhattisgarh | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Mandir Bilaspur - Raipur Chhattisgarh | Arya Samaj Mandir Marriage Jabalpur – Indore - Ujjain Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj in Hindi | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Arya Samaj Marriage in Madhya Pradesh – Chhattisgarh | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Legal Marriage Rules in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official Website of Arya Samaj Indore Madhya Pradesh India | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Arya Samaj Vedic Magazine in Hindi | Historical Documents of British Government | religious organizations in india | Shyamji Krishna Varma | Religious and Social Reform of India | political movements of the renaissance in India | Lala Lajpat Rai | Indian Army | Jhansi | Jat Regiment | Styarth Prakash | Rajput Regiment | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर | आर्य समाज मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर – भोपाल – जबलपुर – ग्वालियर – उज्जैन मध्य प्रदेश भारत | आर्य समाज मन्दिर बिलासपुर - रायपुर छत्तीसगढ़ | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन
नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...