सामाजिक सुख-शांति के लिए केवल राजदंड अथवा राजनियमों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता और न उसकी निंदा करते रहने से ही संभव है। राजदंड, राजनियम और सामूहिक निंदा भी आवश्यक हैं; उनकी उपयोगिता भी कम नहीं है; तथापि यह समाज में व्याप्त पापों और अपराधों का पूर्ण उपचार नहीं है। इसके साथ निरपराध एवं निष्पाप समाज की रचना के लिए मनुष्यों के आंतरिक स्तर का सद्विचारों से भरा-पूरा रहना भी आवश्यक है।
For social happiness and peace, one cannot depend only on the scepter or rules, nor is it possible only by condemning it. Scepter, statute and mass condemnation are also necessary; Their usefulness is no less; However, it is not a complete remedy for the sins and crimes prevalent in the society. Along with this, it is also necessary to keep the inner level of human beings full of good thoughts for the creation of a innocent and sinless society.
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नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...