मनुष्य के जीवन को विकास की अंतिम सीढ़ी तक पहुँचाने के लिए जिस संबल की आवश्यकता होती है - उसका नाम 'श्रद्धा' है। बिना श्रद्धा के, सांसारिक सफलताएँ तो मिल सकती हैं, परंतु आत्मिक संतोष का मिल पाना संभव नहीं हो पाता। आत्मिक संतोष, आध्यात्मिक पुरुषार्थ से ही संभव है और अध्यात्म का मूल प्राण, श्रद्धा में सन्निहित है।
The strength that is needed to take the life of a human being to the last step of development - its name is 'Shraddha'. Without faith, worldly successes can be achieved, but spiritual satisfaction is not possible. Spiritual contentment is possible only through spiritual effort and the core of spirituality is embodied in faith.
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नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...