मस्तिष्क को स्वीकार किया उन्हें अनिवार्यरूपेण, उनके ही तर्क की नष्पित के अनुसार, भाव को अस्वीकार कर देना पड़ा, लेकिन मनुष्य अगर मस्तिष्क ही रह जाए तो उसमें भाव के फूल न खिलते हों, केवल वह गणित और तर्क और हिसाब ही लगता हो, तो वैसा मनुष्य यंत्रवत् होगा। वैसे मनुष्य के जीवन में उल्लास नहीं हो सकता, काव्य नहीं हो सकता, संगीत नहीं हो सकता।
Accepting the mind, they had to reject the emotion, according to the result of their own logic, but if the mind remains, then the flowers of emotion do not bloom in it, only that mathematics and logic and calculation are used, then Such a person would be mechanical. Well, there cannot be gaiety in human life, there cannot be poetry, there cannot be music.
Brain | Arya Samaj MPCG, 9302101186 | Arya Samaj Vivah Mandap | Inter Caste Marriage Helpline MPCG | Marriage Service in Arya Samaj Mandir MPCG | Arya Samaj Intercaste Marriage MPCG | Arya Samaj Marriage Pandits | Arya Samaj Vivah Pooja | Inter Caste Marriage helpline Conductor MPCG | Official Web Portal of Arya Samaj | Arya Samaj Intercaste Matrimony | Arya Samaj Marriage Procedure MPCG | Arya Samaj Vivah Poojan Vidhi | Arya Samaj Marriage Indore | Inter Caste Marriage Promotion | Official Website of Arya Samaj MPCG | Arya Samaj Legal Marriage Service MPCG | Arya Samaj Marriage Registration | Arya Samaj Vivah Vidhi | Inter Caste Marriage Promotion for Prevent of Untouchability | Pandits for Marriage Madhya Pradesh Chhattisgarh
आर्यों का मूल निवास आर्यों के मूल निवास के विषय में महर्षि दयानन्द का दृढ कथन है कि सृष्टि के आदि में मानव तिब्बत की धरती पर उत्पन्न हुआ था। तिब्बत में पैदा होने वालों में आर्य भी थे और दस्यु भी थे। स्वभाव के कारण उनके आर्य और दस्यु नाम हो गये थे। उनका आपस में बहुत विरोध बढ गया, तब आर्य लोग उस...
नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...