विचार-परिवर्तन का जहाँ तक संबंध है; वहाँ सबसे अधिक आड़े आता है - मनुष्य का अहंकार। यह है तो षडरिपुओं में से एक; किंतु व्यक्तित्व के साथ इतना अधिक घुला होता है कि सूक्ष्मदर्शी विवेकशीलों के अतिरिक्त अन्य लोग उसे छोड़ने योग्य बुराई के रूप में देखते नहीं, वरन स्वाभिमान, आत्मसम्मान का नाम देकर उस दुराग्रह को हठपूर्वक अपनाए ही रहते हैं। ऐसी दशा में व्यक्ति न केवल अपने व्यक्तित्व को हेठी होने देता है और न अपनी मान्यताओं में अंतर करना चाहता है। यह उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाता है। दुराग्रह को छोड़कर यथार्थता अपनाने की बात उसके गले उतरती ही नहीं।
So far as change of mind is concerned; There comes the biggest obstacle - the ego of man. This is one of the conspirators; But it is so much mixed with personality that people other than the discerning rationalists do not see it as an evil to be discarded, but stubbornly adopt that prejudice by giving it the name of self-respect, self-respect. In such a situation, the person not only allows his personality to be obstinate and does not want to differentiate his beliefs. It becomes a question of his reputation. The talk of adopting reality, leaving behind prejudice, does not embrace him at all.
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नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...