समुद्रमंथन के समय निकले तो चौदह रत्न थे, पर उनमें से सर्वसाधारण को तत्काल प्रभावित करने वाले दो ही पदार्थ है - एक अमृत, दूसरा विष। अमृत पीने वाले देवत्व बनते थे और सदा अमर रहते थे। विष सदा इसके प्रतिकूल था। उसकी एक बूँद भी गले से नीचे उतर जाने पर मरण निश्चित था। मरण भी अकाल मृत्यु जैसा आश्चर्य और असमंजस भरा। उस समय विष के दुश्परिणामों को देखते हुए भगवान शिव ने उस कालकूट को अपने गले में भर लिया था। न भीतर जाने दिया और न वामन किया। अमृतघट-धन्वतरि के संरक्षण में देवताओं के भंडार में सुरक्षित रखा गया। उसके प्रभाव से वह समूचा क्षेत्र स्वर्ग बन गया।
There were fourteen gems that came out at the time of churning of the ocean, but among them only two substances affect the general public immediately – one is nectar, the other is poison. Those who drank nectar became deities and remained immortal forever. Poison was always against it. Death was certain if even a drop of it went down the throat. Even death, like premature death, was filled with wonder and confusion. At that time, seeing the ill effects of the poison, Lord Shiva filled that calcut around his neck. Neither allowed to go inside nor did Vaman. Amritghat - kept safe in the storehouse of the gods under the protection of Dhanwatari. Due to his influence that whole area became heaven.
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आर्यों का मूल निवास आर्यों के मूल निवास के विषय में महर्षि दयानन्द का दृढ कथन है कि सृष्टि के आदि में मानव तिब्बत की धरती पर उत्पन्न हुआ था। तिब्बत में पैदा होने वालों में आर्य भी थे और दस्यु भी थे। स्वभाव के कारण उनके आर्य और दस्यु नाम हो गये थे। उनका आपस में बहुत विरोध बढ गया, तब आर्य लोग उस...
नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...