प्राण-ऊर्जा व्यक्ति के अंतराल में प्रसुप्त अवस्था में विद्यमान रहती है, जिसे प्रयत्नपूर्वक साधनात्मक उपायों के द्वारा जाग्रत एवं विकसित किया जाता है। इसके जागरण से मनुष्य भूत, वर्तमान एवं भविष्य से संबंध स्थापित कर सकता है और उसे स्थान एवं काल का बंधन भी तब बाँध नहीं सकते हैं। यह तभी संभव हो पता है, जब व्यक्ति रचनात्मक-बोधात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत होता है।
Prana-energy exists in the dormant state of the individual, which is awakened and developed by effortful means by means of spiritual practices. With its awakening, a person can establish a relationship with the past, present and future, and then even the bondage of space and time cannot bind him. This is possible only when a person is filled with creative-perceptual energy.
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आर्यों का मूल निवास आर्यों के मूल निवास के विषय में महर्षि दयानन्द का दृढ कथन है कि सृष्टि के आदि में मानव तिब्बत की धरती पर उत्पन्न हुआ था। तिब्बत में पैदा होने वालों में आर्य भी थे और दस्यु भी थे। स्वभाव के कारण उनके आर्य और दस्यु नाम हो गये थे। उनका आपस में बहुत विरोध बढ गया, तब आर्य लोग उस...
नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...