अपने परिवार में मनुष्य का स्वयं की सुरक्षित महसूस करना इतना विशिष्ट है कि परिवारविहीन मानवसमाज की कल्पना ही स्वयं में प्रकृतिविरुद्ध लगती है। इसमें बच्चे-बूढ़े सभी एक-दूसरे के पूरक बनते हुए परिवार को लघु समाज का रूप देते हैं। अपनेपन से भरेपूरे इस माहौल में प्रेम, त्याग, सहयोग, आज्ञापालन, अनुशासन जैसे गुणों का अभ्यास एक सुगढ़ व्यक्तित्व का निर्माण करता है। यहाँ बच्चों को अपने आप उत्तम संस्कार मिल जाते हैं। अपने क्षमता के अनुरूप काम करते अपंग एवं अल्पबुद्धि भी प्यार के हकदार बनते हैं। दुख, कष्ट व आपत्तियों से भरे समय को एक-दूसरे के सहारे बड़ी आसानी से पार कर लिया जाता है।
It is so special for man to feel safe in his family that the very idea of a human society without a family seems against nature in itself. In this, children and old people complementing each other and giving the family the form of a small society. In this environment full of belongingness, practice of qualities like love, sacrifice, cooperation, obedience, discipline builds a strong personality. Here, children automatically receive excellent values. Working according to their capacity, even the handicapped and short-witted become entitled to love. Times filled with sorrow, suffering and objections are easily overcome with the help of each other.
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नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...