भीतर का भाव शुद्ध न हो तो दान, यज्ञ, तप, शौच, तीर्थसेवन, शस्त्रों का श्रवण एवं स्वाध्याय ये सभी अतीर्थ हो जाते हैं। इसलिए जिसने अपने इंद्रिय समुदाय को वश में कर लिया है, वह मनुष्य जहाँ भी निवास करता है, वहीँ उसके लिए कुरुक्षेत्र, नैमिषारयण और पुष्कर आदि तीर्थ हैं। - महर्षि अगस्त्य
If the inner spirit is not pure, then charity, yagya, austerity, defecation, pilgrimage, hearing of weapons and self-study all these become tirthas. Therefore one who has subdued his sense community, wherever he resides, there are pilgrimages for him like Kurukshetra, Naimisharayan and Pushkar etc. - Maharishi Agastya
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नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...