अपने भीतर आनंद के अमृत स्त्रोत के होते हुए भी सुख की चाह में जीवन भर विषय-वासनाओं व भोग पदार्थों की याचना मनुष्य करता फिरता है। वह तृप्त तो होना चाहता है, आनंदित तो होना चाहता है, पर आत्मा को जाने बिना, परमात्मा, सुख-दुःख, हर्ष-विषाद व जय-पराजय आदि दबावों के बीच रोता-बिलखता रहता है, पर उन द्वंद्वों से मुक्त होकर आनंद से भरा हुआ जीवन जीने का कोई प्रयास-पुरुषार्थ भी वह नहीं करता। वह भौतिक सुख के पीछे भागते-भागते अपनी मानसिक शांति भी खो देता है।
In spite of having nectar source of bliss within himself, in the desire of happiness, a person keeps on pleading for material desires and indulgences throughout his life. He wants to be satisfied, he wants to be blissful, but without knowing the soul, he keeps on weeping in the midst of pressures like God, happiness and sorrow, joy and defeat, victory and defeat etc. He doesn't even make any effort to live a full life. He also loses his mental peace while running after material pleasures.
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नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...