योग वैदिक ऋषियों की अध्यात्म-साधना की चरम परिणति है। योग इस गतिशील जगत् को स्वप्न, माया और मृग-मरीचिका नहीं, वरन ब्रम्ह की अभिव्यक्ति मानता है। यह पूर्ण योग आज समस्त संसार की आवश्यकता है। क्यों ? क्योंकि यह पूर्व और पश्चिम में, भूत और वर्तमान में, अध्यात्म और विज्ञान में, भौतिकता और आध्यात्मिकता में एक सेतु बन, एक अद्भुत सामंजस्य व समन्वय स्थापित कर ऐसा ज्योति मार्ग दिखाता है, जिसमें न तो हम अतीत के संचित धन से वंचित हों और न ही अधुनीक युग की देन को छोड़ देने के लिए बाध्य ही हों।
Yoga is the culmination of the spiritual practice of the Vedic sages. Yoga considers this dynamic world not to be a dream, an illusion and a deer, but a manifestation of Brahman. This complete yoga is the need of the whole world today. Why ? For it becomes a bridge between the East and the West, between the past and the present, between spirituality and science, between materiality and spirituality, establishing a wonderful harmony and harmony and showing such a path of light, in which neither we are deprived of the accumulated wealth of the past and Nor should you be compelled to give up the gifts of the modern era.
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आर्यों का मूल निवास आर्यों के मूल निवास के विषय में महर्षि दयानन्द का दृढ कथन है कि सृष्टि के आदि में मानव तिब्बत की धरती पर उत्पन्न हुआ था। तिब्बत में पैदा होने वालों में आर्य भी थे और दस्यु भी थे। स्वभाव के कारण उनके आर्य और दस्यु नाम हो गये थे। उनका आपस में बहुत विरोध बढ गया, तब आर्य लोग उस...
नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...