Any person fulfilling who have faith in Vedic culture and Principles of Arya Samaj may, upon agreeing to prescribed rules / guidelines, may contact Arya Samaj Mandir to perform Marriage Ceromony /Vivah Sanskar. The Vivah Sanskar will be solemnised at Arya Samaj Mandir or at place of choice of the couple. Arya Samaj believes in inclusive society and hence within cast and inter-cast marriage are also solemnised by Arya Purohit.
परिवारजनों की अनुपस्थिति में भी अब विवाह हो सकेंगे
ग्वालियर । आर्य समाज में होने वाले विवाहों पर लगाई गई शर्तें ग्वालियर स्थित मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की युगल पीठ द्वारा हटा दी गई हैं। अब माता-पिता अथवा परिवारजनों की उपस्थिति के बिना भी आर्य समाज में विवाह हो सकेंगे। बुधवार दिनांक 30 अक्टूबर 2013 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर स्थित युगल पीठ ने आर्य समाज की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि विधियॉं बनाने का काम न्यायालय का नहीं है।
आज की प्रतिस्पर्धा की दुनिया में अधिकांश व्यक्ति जल्दी ही अपनी मंजिल को प्राप्त कर लेना चाहते हैं, उनके लिए सफलता एकमात्र मकसद बन जाती है। मंजिल तक पहुँचने की प्रतिक्रिया उनके लिए अर्थहीन हो जाती है। कुल मिलाकर उनकी हर कार्रवाई में जल्दबाजी का यह अधैर्य का तत्व मौजूद रहता है। नतीजा मानसिक अवसाद में दिखाई देता है। इसलिए अपने तमाम व्यवहार में मनुष्य को सहशीलता का परिचय देना चाहिए। सहनशीलता से व्यक्ति के अन्दर सकारात्मक प्रवृत्तियां प्रबल होती हैं। व्यक्ति नकारात्मक मनोवृत्तियों पर विजय प्राप्त करता है। वह समाज के साथ अपने को बेहतर ढंग से जोड पाता है। समाज जो अपेक्षा करता है उसे वह अपने धैर्य के साथ पूरा करने का प्रयास करता है।
महर्षि जैमिनी के पश्चात् ऋषि परम्परा में स्वामी दयानन्द सरस्वती प्रथम महापुरुष हैं, जिन्होंने शाश्वत सनातन तथा सार्वभौम मानव-धर्म वेद धर्म की दुहाई ही नहीं दी, अपितु उसके लोप होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न संसार के समस्त मत, तन्त्र तथा सम्प्रदायों की विधिवत् समीक्षा की (सत्यार्थप्रकाश 11 से 14 वें समुल्लास तक)। वह स्वयं स्वमन्तव्यामन्तव्य प्रकाश में लिखते हैं- "ब्रह्मा से लेकर जैमिनी पर्यन्त ऋषि-मुनियों द्वारा अनुमोदित और प्रतिपादित सनातनधर्म ही हमारा धर्म है। इसे मानना व मनवाना अपना अभीष्ट है।
नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...